Parasnath Hill : पारसनाथ हिल के सम्मेद शिखरजी को अब तीर्थस्थल के रूप मे जाना जायेगा।

Parasnath Hill : झारखंड के पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित सम्मेद शिखरजी को भारत सरकार द्वारा एक तीर्थस्थल के रूप मे जगह दी। दरअसल  कुछ दिन पहले इस क्षेत्र को पर्यटक क्षेत्र के तोर पर घोषित किया गया था। इसी बात को लेकर जैन समुदाय के लोग अड़ गया और देश भर मे झारखंड के इस सम्मेद शिखरजी को लेकर विवाद शुरू हो गया। देश भर मे प्रदर्शन के बाद और एक मुनि के के निधन के बाद आंदोलन ओर जोर पकड़ा । उनकी मांग थी पारसनाथ पहाड़ी (Parasnath Hill)पर स्थित सम्मेद शिखर जी  को पर्यटक स्थल घोषित करने के फैसले को वापस लिया जाए। 

सम्मेद शिखर जी
पारसनाथ पहाड़ के सम्मेद शिखर जी का चित्र (जैनियों का तीर्थस्थल)।

 

जब से इस क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र घोषित किया गया, तब से यहाँ पर मांस, और शराब की बिक्री होने लगी है। इसी को लेकर जैन समाज के लोग आंदोलन पर उतर आये। जैन समाज के लोग केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव से मुलाकात की। जिसके बाद उन्होंने जैन समाज के लोगों को भरोसा दिलाया की उनकी धार्मिक भावनाओ को ख्याल रखा जायेगा। 

सम्मेद शिखरजी को तीर्थस्थल के रूप मे जगह प्राप्त हुआ। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश से केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव के इन गतिविधिओ पर तत्काल रोक लगा दी और  झारखंड के (Parasnath Hill) पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित सम्मेद शिखरजी को भारत सरकार द्वारा एक तीर्थस्थल के रूप मे जगह दी। उन्होंने ये भी बताया की पारसनाथ क्षेत्र के आस-पास मे मांस, शराब बेचना और तेज आवाज मे गाने बजने पर भी रोक लगा दी। इस फैसले के बाद जैन समाज खुशी जाहीर की और सरकार का आभार जताया है। 

पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित सम्मेद शिखरजी का क्या था मामला ? 

दरअसल 2019 को केंद्र सरकार द्वारा पारसनाथ पहाड़ी (Parasnath Hill) को इको पर्यटन क्षेत्र घोषित करने का एलान किया था। इसी के अनुरूप झारखंड सरकार ने 2022को अधिसूचना जारी कर दी और सम्मेद शिखर जी को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया था। इसके बाद से इस क्षेत्र मे मांस और शराब बेचना शुरू हुआ एवं तेज ध्वनि की आवाज से गाने बजने लगे। इसी को लेकर पूरा विवाद शुरू हुआ और जैन समाज देश भर मे आंदोलन खड़ा कर दिया। 

कौन थे जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी 

भगवान श्री पारसनाथ जी जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हुआ करता था। प्रभु पारसनाथ जी का जन्म बनारसी में  पौष कृष्ण दशमी के दिन हुआ था । उनके पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम वामादेवी थी । इनके पिता अश्वसेन  वाराणसी के राजा हुआ करते थे उनका प्रारंभिक जीवन राजकुमार के तौर पर व्यतीत हुआ।  तीर्थंकर बनने से पहले उन्हे 9 पूर्व जन्म लेने पड़े थे।  पहले जन्म में ब्राह्मण, दूसरे में हाथी, तीसरे में स्वर्ग के देवता, चौथे में राजा. पाँचवे  में देव, छोटेवे  जन्म में चक्रवर्ती सम्राट, 7 जन्मों में देवता, आठ में राजा और नौ जन्म मे राजा इंद्रा तत्पश्चात तीर्थंकर बनने  का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

प्रभु पारसनाथ जी का प्रतीक चिन्ह सर्प था। उनके शरीर के रंग नीला था। पारसनाथ जी का 100 वर्ष के आयु मे निधन हुआ और उनके शरीर की ऊंचाई 9 हाथ की थी। भगवान श्री पारसनाथ जी जन्म से तीन ज्ञान के धारक थे,जैसे कि श्रुतजान, मतिज्ञान तथा अवधिज्ञान ।  ऐसा माना जाता है की महात्मा बुद्ध के अधिकांश पूर्वज भी पार्श्वनाथ धाम के अनुयायी थे। 

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प्रभु पार्श्वनाथ जी की जीवन लीला

भगवान श्री प्रभु पार्श्वनाथ जी के दीक्षा वैशाख माह के कृष्ण दशमी के दिन हुआ था। दीक्षा के समय प्रभु के मन पर ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस प्रकार से प्रभु को चार ज्ञान के धारक कहा गया। इसके पश्चात प्रभु बहुत से कष्ट सहन करके 5 ज्ञान के धारक भी हो गए इन बहुत सारे दुख कष्ट में से एक बहुचर्चित घटनाओं में से एक है ,की प्रभु जब ध्यान मुद्रा में बैठे थे तब उनके ऊपर मुसलधार  बारिस के साथ-साथ औला पत्थर और बिजली कड़कना शुरू हुआ । तभी मां पद्मावती और धर्मेंद्रनाथ प्रभु ने पार्श्वनाथ प्रभु को रक्षा किया। फिर भी प्रभु के अखंड ध्यान को खंडित नहीं कर पाया और 84 दिन में प्रभु को कैवल्य ज्ञान की  प्राप्त हुई। 

इस प्रकार अतिकष्ट से प्रभु की साधना पूर्ण हुई थी।  प्रभु पार्श्वनाथ  सर्वज्ञ, जिन, कैवल्य और अरिहंत के धारक हो गए ।  इस प्रकार प्रभु पाँच ज्ञान के धारक हो गए। 

प्रभु पार्श्वनाथ ने गिरिडीह मे (Parasnath Hill)पारसनाथ पहाड़ के सम्मेद शिखर में श्रावण शुल्क सप्तमी के दिन निर्वाण प्राप्त किया और हमेशा के लिए जीवन मरण के इस बंधन को काटकर मुक्त हो गया। 

श्री पार्श्वनाथ भगवान की आरती-


जय पारस देवा, स्वामी जय पारस देवा !

सुर नर मुनिजन तुम चरणन की करते नित सेवा ।

पौष वदी ग्वारस काशी में आनंद अतिभारी,

अश्वसेन वामा माता उर लीनों अवतारी ।

Om जय पारस देवा…..

श्यामवरण नवहस्त काय पग उरग लखन सोहैं,

सुरकृत अति अनुपम पा भूषण सबका मन मोहें ।

Om जय पारस देवा ……..

जलते देख नाग नागिन को मंत्र नवकार दिया,

हरा कमठ का मान, ज्ञान का भानु प्रकाश किया ।

ओम जय पारस देवा…..

माता पिता तुम स्वामी मेरे,आस करूं किसकी,

तुम बिन दाता और ना कोई, शरण गहूँ  जिसकी ।

ओम जय पारस देवा ……

तुम परमात्मा तुम अध्यात्म तुम अंतर्यामी,

सर्ग मोक्ष के दाता तुम हो, त्रिभुवन के स्वामी ।   

               ओम जय पारस देवा…….

दीनबंधु दुखहरण जिनेश्वर, तुम ही हो मेरे,               

             दो शिवधाम को वास दास, हम दार खड़े तेरे ।       

            ओम जय पारस देवा …….

विपद-विकार मिटाओ मन का,अर्ज सुनो दाता,   

              सेवक द्वै-कर जोड़ प्रभु के, चरणों चित ताला ।   

                ओम जय पारस देवा……

Conclusion :

आज के इस ब्लॉग के माध्यम से मैं जैन धर्म के लोग पारसनाथ पहाड़ (Parasnath Hill)के सम्मेद शिखर को लेकर क्यों आंदोलन कर रहे, सम्मेद शिखर पारसनाथ जी का क्या संबंध है, कौन है प्रभु पारसनाथ , उनके जीवन लीला प्रसंग और पारसनाथ जी के आरती के ऊपर चर्चा किया। 

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